Tuesday, January 13, 2009

प्राण जब तलक रहे लड़े वतन के वास्ते

यह गीत मुंबई पर हुए हमले के दौरान अपने प्राणों की बलि देने वाले अमर शहीदों के शौर्य और जांबाजी को अमिट रखने का प्रयास है. भारत के हर नागरिक में, चाहे वह कितने ही ऊँचे ओहदे पर विराजमान हो, किसी भी उम्र का हो, निहत्था हो, विपरीत समय में भी देश के लिए प्राण तक बलिदान कर देने की भावना जन्म ले, शहीदों का यही जीवन दर्शन इस गीत का मूल भाव है.
इस गीत का सस्वर पाठ नीरज जी के प्रसिद्ध गीत "कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे" (फिल्म "नई उमर की नई फसल") की धुन पर किया जा सकता है। इस गीत को सभी देशवासियों खासतौर से बच्चों और युवाओं तक पहुँचाने के लिए आपसे सहयोग का अनुरोध करता हूँ. कृपया अपनी प्रतिक्रियाएं एवम सुझाव अवश्य दें. समानांतर संपर्क के लिए ई-मेल ID - vkswarn.123@gmail.com है।
जब शहर दहल उठा
खौफ जब उबल उठा
गोलियों की धूम से
गूँज गगनतल उठा
हम तभी निकल पड़े ,घर से रण के रास्ते
प्राण जब तलक रहे,लड़े वतन के वास्ते


फ़र्ज़ की पुकार जब हुई तो एकदम उठे
वक्त की ललकार का जवाब देने हम उठे
हिंद के जवां हैं वो कि जिस तरफ़ कदम उठे
दुश्मनों की रूह कांपे और दिल सहम उठे
वीर ऐसा रण करें
जग अनुकरण करे
आन पर बने तो
सहज मृत्यु का वरण करें
'देश कीर्ति हो न क्षय
नील नभ रहे अभय
सत्य हो सदा विजय ' शपथ चले उच्चारते
प्राण जब तलक रहे ,लड़े वतन के वास्ते


दृष्य क्या था वो शवों से रास्ते अटे हुए
थे मनुष्य या कि भंग अंग थे सटे हुए
माँ के लाल और कई सुहाग थे लुटे हुए
साँस को संभालकर थे कुछ अभी पटे हुए
गहरी साँस खीँच के
मुट्ठियों को भींच के
उबल पड़ा लहू रगों में
काम देख नीच के
अब तो आर -पार तय
शत्रु का संहार तय
करके ये निश्चय बढ़े सिंह -से दहाड़ते
प्राण जब तलक रहे लड़े वतन के वास्ते

रात काली हो या धुंध घेर ले घुमड़ -घुमड़

खौफ का सैलाब आए चाहे अब उमड़ - उमड़
आज ये करेंगे दुश्मनों की छातियों पे चढ़
इक तरफ़ हो सर कि दूसरी तरफ पड़ा हो धड़
जा डटे ये ठानकर
लौह वक्ष तानकर
सामना जिस पल हुआ
जोश था उफान पर
फ़िर मचाया वो प्रलय
कि ठहर गया समय
शत्रु शून्य में विलय किया विजयश्री साधते
प्राण जब तलक रहे लड़े वतन के वास्ते


ऐसा रण किया है पहले जो कभी हुआ नहीं

आज देश के गगन पे रत्ती भर धुँआ नहीं
आँख शत्रु फिर उठाए उनमेँ हौसला नहीं
आके देख लो कि बच के एक भी गया नहीं
नैन अब करो न नम
क्या हुआ रहे न हम
दो यही आशीष इसी
गोद में फिर लें जनम
मातृभूमि की हो जय
जय सदा, सदा ही जय
थे अजेय रहें अजेय गगन रहो गुंजारते
प्राण जब तलक रहे लड़े वतन के वास्ते

Thursday, January 8, 2009

उदास होके न इस शाम को उदास करो

उदास हो के न इस शाम को उदास करो
कोई तो मुस्कराने की वजह तलाश करो
यूँ ही आँखों में उम्मीद, हाँ...... ऐसे ही जरा
यही कोशिशें रह-रह के, ऐ शाबाश , करो
फलक पे ये वीराना देर तक न रहेगा
मेरी मुट्ठी में सितारे हैं दामन पास करो
खुदा को खास प्यारी है ये तुम्हारी सूरत
मेरे सीने पे रख के सर मुझे भी खास करो
सदा बन्दे की खुशी में खुश रहता है खुदा
उसे अहसास है तुम भी जरा अहसास करो